"गोंडवाना जिव जगत की उत्पति , उत्थान ,
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"गोंडवाना जिव जगत की उत्पति , उत्थान ,
-गोंडवाना जिव जगत की उत्पति , उत्थान , पतन और पुनरुत्थान संघर्ष की लेखक ने इस पुस्तक के माध्यम से गोंड समुदाय के विषय में विशेष रूप से गोंड संज्ञा के बारे में दूसरों के दिलो में जो भ्रांति सदियों से पनपते आ रही है उसी समूलत नष्ट कर दिया है। कोया-वंशीय कोईतोर गण्डजीवो की पहिचान एक गोन्दोला में होती है इसलिए वे गोन्दोला वयवस्ता धारी गोंड नाम से जाने जाते है और सगावेन वयवस्था स्वीकारने से गोंडीवेन कहलाते है उन्ही गोंडीवेनो का गोंडवाना बना है। इतिहास। मूल रूप से गोंडी भाषिक होने से उन्हे गोंड समुदाय के सांस्कृतिक मूल्य की गहराई से जानकारी है। उन्हे यह प्रतिपादन किया है ही जब मनु के मानवों को व्य्वस्था हिन्दू हो सकती है , अल्लाह के इंसानो की व्य्वस्था मुस्लिम हो सकती है और मसीहा के मैनो ही वयवस्था ईसाई हो सकती हो तो क्या कोया सूत्र से निर्मित कोईतोर की व्य्वस्था गोंडी नहो हो सकती ?? इसमें आश्चर्य जैसी तो कोई बात नही है। .
--- कोया वंशीय कोईतूर गण्डजिवो की गोंडीवेन व्य्वस्था को देखकर ईसाई ने यहाँ सोचा के गोंडीवेन व्य्वस्था ही वजह से कोया वंशीय कोईतोर ईसाई नही बन सकते। इसलिए गोंड शब्द पर ही वार उनके लेखकों ने आघात करना आरंभ किया और अपने किताबो में लिखा दिया गोंड यह हिन्दू के द्वारा दिया गया नाम है अन्यथा वे स्वय को कोई या कोईतोर कहते है. अंग्रजो की अधिसत्ता समाप्त हो जाने पर हिन्दू ने भी यह सोचा की जब तक कोयावंशीय कोईतरो ने गोंडीवेन व्य्वस्था विध्यमान है तबतक उनको हिन्दुओ की मूलधारा में नही मिलाया जा सकता। अंत उन्होंने भी गोंड यह मुस्लिम आक्रमणकारियों द्वारा संभवत बाहरवीं सदी में दिया गया नाम है ऐसा कहना और लिखना आरंभ किया ताकि कोईतूर लोग गोंड शब्द त्याग कर हिन्दुवो की धारा में मिल जाये। यह एक सोची समझी साजिश है। अंत हिन्दू विद्वान एक साधारण सी बात नही समझ सकेंगे इतने नादान तो नहीं है . की गोंड कोया वंशीय कोईतोर स्वय को गोंड क्यों कहते है ?? इसे तो कोई भी समझ सकता है। क्यों की वे हिन्दू , मुस्लिम ,ईसाई , पारसी , बौद्ध , जैन , सिख , क्यों नही इसलिए गोंड है . इस पुस्तक से गोंडीवेन समुदाय को दिगभ्रमित करने की जो साजिश चल रही है वह नाकाम हो जायेगी। .
इस पुस्तक की लेखक ने अपने अथक प्रयास से दिगभ्रमित गोंडीवेन समुदायों को एक नयी दिशा प्रदान कर उसमे नवचेतना जाग्रत करने की कोशिश की है , हम लेखक के इस महत् कार्य के लिया गोण्डवाना गोंडीवेन समुदाय की और से अत्यन्त आभारी है। ...रानी राजश्री देवी बक्त बुलंद शाह उइके --- देवगढ़ किल्ला पैलेस , नागपुर --- "गोंडवाना जिव जगत की उत्पति , उत्थान , पतन और पुनरुत्थान संघर्ष " के सौजन्य से
"गोंडवाना जिव जगत की उत्पति , उत्थान ,
-गोंडवाना जिव जगत की उत्पति , उत्थान , पतन और पुनरुत्थान संघर्ष की लेखक ने इस पुस्तक के माध्यम से गोंड समुदाय के विषय में विशेष रूप से गोंड संज्ञा के बारे में दूसरों के दिलो में जो भ्रांति सदियों से पनपते आ रही है उसी समूलत नष्ट कर दिया है। कोया-वंशीय कोईतोर गण्डजीवो की पहिचान एक गोन्दोला में होती है इसलिए वे गोन्दोला वयवस्ता धारी गोंड नाम से जाने जाते है और सगावेन वयवस्था स्वीकारने से गोंडीवेन कहलाते है उन्ही गोंडीवेनो का गोंडवाना बना है। इतिहास। मूल रूप से गोंडी भाषिक होने से उन्हे गोंड समुदाय के सांस्कृतिक मूल्य की गहराई से जानकारी है। उन्हे यह प्रतिपादन किया है ही जब मनु के मानवों को व्य्वस्था हिन्दू हो सकती है , अल्लाह के इंसानो की व्य्वस्था मुस्लिम हो सकती है और मसीहा के मैनो ही वयवस्था ईसाई हो सकती हो तो क्या कोया सूत्र से निर्मित कोईतोर की व्य्वस्था गोंडी नहो हो सकती ?? इसमें आश्चर्य जैसी तो कोई बात नही है। .
--- कोया वंशीय कोईतूर गण्डजिवो की गोंडीवेन व्य्वस्था को देखकर ईसाई ने यहाँ सोचा के गोंडीवेन व्य्वस्था ही वजह से कोया वंशीय कोईतोर ईसाई नही बन सकते। इसलिए गोंड शब्द पर ही वार उनके लेखकों ने आघात करना आरंभ किया और अपने किताबो में लिखा दिया गोंड यह हिन्दू के द्वारा दिया गया नाम है अन्यथा वे स्वय को कोई या कोईतोर कहते है. अंग्रजो की अधिसत्ता समाप्त हो जाने पर हिन्दू ने भी यह सोचा की जब तक कोयावंशीय कोईतरो ने गोंडीवेन व्य्वस्था विध्यमान है तबतक उनको हिन्दुओ की मूलधारा में नही मिलाया जा सकता। अंत उन्होंने भी गोंड यह मुस्लिम आक्रमणकारियों द्वारा संभवत बाहरवीं सदी में दिया गया नाम है ऐसा कहना और लिखना आरंभ किया ताकि कोईतूर लोग गोंड शब्द त्याग कर हिन्दुवो की धारा में मिल जाये। यह एक सोची समझी साजिश है। अंत हिन्दू विद्वान एक साधारण सी बात नही समझ सकेंगे इतने नादान तो नहीं है . की गोंड कोया वंशीय कोईतोर स्वय को गोंड क्यों कहते है ?? इसे तो कोई भी समझ सकता है। क्यों की वे हिन्दू , मुस्लिम ,ईसाई , पारसी , बौद्ध , जैन , सिख , क्यों नही इसलिए गोंड है . इस पुस्तक से गोंडीवेन समुदाय को दिगभ्रमित करने की जो साजिश चल रही है वह नाकाम हो जायेगी। .
इस पुस्तक की लेखक ने अपने अथक प्रयास से दिगभ्रमित गोंडीवेन समुदायों को एक नयी दिशा प्रदान कर उसमे नवचेतना जाग्रत करने की कोशिश की है , हम लेखक के इस महत् कार्य के लिया गोण्डवाना गोंडीवेन समुदाय की और से अत्यन्त आभारी है। ...रानी राजश्री देवी बक्त बुलंद शाह उइके --- देवगढ़ किल्ला पैलेस , नागपुर --- "गोंडवाना जिव जगत की उत्पति , उत्थान , पतन और पुनरुत्थान संघर्ष " के सौजन्य से
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