जिला मुख्यालय मंडला से 16 किमी की दूरी पर गोंड वंश के राजाओं की राजधानी रामनगर बसा हुआ है। इस क्षेत्र का इतिहास प्राचीन होने के साथ गौरवशाली भी
यहां पर 350 साल पहले राजा हृदय शाह ने मोतीमहल का निर्माण करवाया था जो उस समय की वास्तुकला का अद्भुत उदाहरण
सीमित संसाधन और तकनीक के बावजूद पांच मंजिला महल राजा की इच्छाशक्ति की गवाही देता है। समय के साथ ही दो मंजिलें जमीन में दब गई हैं लेकिन तीन मंजिलें आज भी देखी जा सकती
इस महल की वास्तुकला को देखने देशी- विदेशी पर्यटक पहुंचते रहते हैं। गोंडवाना काल के दौरान राजा संग्राम शाह शक्तिशाली और वीर योद्धा
उन्होंने कई लड़ाइयां लड़ीं तथा 52 गढ़ों पर जीत हासिल कर गोंडवाना साम्राज्य की स्थापना की। संग्राम शाह के वंशज राजा हृदय शाह ने रामनगर को राज्य की राजधानी
उन्होंने चार महलों का निर्माण करवाया था। इनमें मोतीमहल आज भी खड़ा है। यह सबसे विशाल और सुंदर महल
इसका निर्माण सन् 1667 में करवाया गया था। इसके अलावा इसी के पास रायभगत की कोठी भी दर्शनीय महल है। राजा ने रानी के लिए ‘बेगम महल’ और सेनापतियों के लिए ‘बादल महल’ का निर्माण भी करवाया
इन महलों को देखने के लिए पर्यटक रोजाना पहुंचते हैं। कान्हा नेशनल पार्क आए अनेक विदेशी पर्यटक बड़ी बारीकी से किए इस निर्माण को देखकर अचंभित रह जाते
मोतीमहल नर्मदा के किनारे स्थित है और इसके झरोखों से नर्मदा का सौंदर्य दिखाई पड़ता है। इस महल में पांच मंजिलों में 100 से अधिक कमरे
इसमें अस्तबल, हाथीखाना भी बना हुआ है। रानियों के स्नान के लिए एक विशालकाय हौज बनी हुई है। जिसे नर्मदा जल से भरा जाता
विष्णु मंदिर की मूर्तियां संग्रहालय में : पुरातत्व संग्रहालय मंडला की प्रभारी हेमंतिका शुक्ला और इतिहासकार प्रो. शरद नारायण खरे ने बताया कि रामनगर में प्राप्त मूर्तियां गोंडकालीन मूर्तिकला का बेहतरीन साक्ष्य
मोतीमहल के सामने ही विष्णु मंदिर का निर्माण करवाया गया था। जहां पर पुरातन प्रतिमाएं थीं। इन प्रतिमाओं को सुरक्षित रखने के लिए मंडला संग्रहालय में जगह दी गई
ये चार नंदी, सूर्य प्रतिमा, गणेश प्रतिमा, कोमारी प्रतिमा हैं। 1984 में रामनगर के स्मारकों को मप्र शासन के पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षण प्रदान किया गया
कंवदंती : हवा में उड़कर आते थे
किंवदंती है कि रानी महल का निर्माण ढाई दिन में पूर्ण करा लिया गया था। महल से लगभग 4 किमी दूर अष्टफलक पत्थरों का बहुत बड़ा ढेर आज भी पहाड़ के ऊपर
इसे अब काला पहाड़ के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है कि इसी स्थान से पत्थर उड़कर महल निर्माण स्थल तक पहुंचते थे। यह सब तंत्र शक्ति से संभव हुआ
उस समय राजा तंत्र शक्ति को बहुत मानते थे। इस पर लोगों को सहज विश्वास इसलिए भी हो जाता है कि 16वी शताब्दी में ऐसे कोई विशेष संसाधन नहीं थे, फिर भी अष्टफलक वजनी पत्थर महल निर्माण स्थल तक पहुंच
कई राजाओं ने किया
1634 से 1668 के बीच रामनगर राजा हृदय शाह की राजधानी रहा। इसके बाद 1685 तक छत्रशाही ने, 1688 तक केशरीशाही ने, 1732 तक नरेंद्रशाह बुर्ज ने, 1742 तक महाराज शाही ने, 1749 तक शिवराज शाही ने, कुछ समय तक दुर्जन शाही, फिर 1749 से 1776 तक महिपाल शाही ने, 1778 तक नरहरि शाही ने राज्य
इस राजवंश का अंतिम शासक सुमेद शाही को माना जाता है। इसके बाद यहां 1781 से 1799 तक मराठों का शासन