रावण की लंका कहाँ थी
March 22, 2020
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AS markam
Where was lanka of ravana
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रावण की लंका कहाँ थी
रावण की लंका के विषय में बहुत भ्रम फैला हुआ है कुछ विद्वान का मानना है की रावण की लंका मध्य भारत में अमर कंटक के ऊपर थी। राम को जब वनवास की आज्ञा हुई तो घर से दक्छिन की ओर जाकर चिटकूट में बहुत दिनों तक रहे ,वहा से चलकर दंडकारण्य गये जब राम ने दंडकारण्य में प्रवेश किया उनको नेक ऋषियों दवरा मिलवाया गया। और सुझाया गया यह जंगली लोगो का का काम था। जिनको लोग राक्छस कहते है। इनमे उनके राजा की सम्मति थी। उस समय राजा रावण जी जो अपने राज्य की पर्वतो सबसे उची चोटी पर रहता था। लंका शब्द गोंड भाषा का है जिसका अर्थ होता है टीला। प्रान्त में आज तक गोंडो की की बहुतायत थी १३ वी १४ वी शताब्दी में गोंड लोग मौका पाकर मध्य प्रदेश में राजा बन बैठे। इनका अधिपत्य तीन चार सो वर्षो तक स्थिर रहा इस घराने में सबसे प्रतापी राजा संग्रामशाह हुआ जिसके सोने के सिक्के में उसके नाम के आगे पुलस्त्य वंश खुदा मिलता है ,संग्रामशाह रावण वंशी राजा था। ११६१ ई.. की जनगर्णा के समय लाखो गोंड जाती के लोगो ने अपने को रावणवंशी लिखवाया था जिससे यह स्पस्ट होता है की की रावण गोंड वंश का था। रावण की लंका अमरकंटक में थी। अमरकंटक के पास ही राम और रावण का युद्ध हुआ जो वास्तव में आर्य और अनार्य युद्ध था। रावण का युद्ध अमरकंटक की चोटी पर हुआ। एक एक ओर गोंड सेना और दूसरी ओर उराव और सबरो की मुठभेड़ हुई। अनत्ता राम की जित हुई। राम ने गोंडो के विपक्छ उराव और सबरो को कर लिया सहयता से विजय पायी। यही उराव काल में वानर कहलाते थे। उराव और सबर आज भी अमरकंक के पास जाते सन ११११ सबरो की संख्या प्रायः छह लाख और उराव की संख्या नौ लाख थी।
आज भी मध्य प्रदेश में गोंड लोग दसहरा के पर्व पर रावनदेव की पूजा करते है। वइसे ही महारष्ट्र कवर्धा जिले के हिव्रगाव देव जंगल में आदिवासी रावनदेव की पूजा करते है।
महराजा रावण के नाम पर भंडारा गोंडियाजिले में रावनबाडी गांव है इसी तरह छत्तीसगढ़ रायपुर में रावणपरा मोहल्ला है। इससे जाहिर होता है की रावण का आस्तित्व और राजस्व इन प्रदेशो में था। नागपुर के पास रामटेक रामटेक तहसील में डेवलपर आदिवासी बाहुल्य छेत्र में गोंड लोग रावण की पूजा करते है
रावण की लंका के विषय में बहुत भ्रम फैला हुआ है कुछ विद्वान का मानना है की रावण की लंका मध्य भारत में अमर कंटक के ऊपर थी। राम को जब वनवास की आज्ञा हुई तो घर से दक्छिन की ओर जाकर चिटकूट में बहुत दिनों तक रहे ,वहा से चलकर दंडकारण्य गये जब राम ने दंडकारण्य में प्रवेश किया उनको नेक ऋषियों दवरा मिलवाया गया। और सुझाया गया यह जंगली लोगो का का काम था। जिनको लोग राक्छस कहते है। इनमे उनके राजा की सम्मति थी। उस समय राजा रावण जी जो अपने राज्य की पर्वतो सबसे उची चोटी पर रहता था। लंका शब्द गोंड भाषा का है जिसका अर्थ होता है टीला। प्रान्त में आज तक गोंडो की की बहुतायत थी १३ वी १४ वी शताब्दी में गोंड लोग मौका पाकर मध्य प्रदेश में राजा बन बैठे। इनका अधिपत्य तीन चार सो वर्षो तक स्थिर रहा इस घराने में सबसे प्रतापी राजा संग्रामशाह हुआ जिसके सोने के सिक्के में उसके नाम के आगे पुलस्त्य वंश खुदा मिलता है ,संग्रामशाह रावण वंशी राजा था। ११६१ ई.. की जनगर्णा के समय लाखो गोंड जाती के लोगो ने अपने को रावणवंशी लिखवाया था जिससे यह स्पस्ट होता है की की रावण गोंड वंश का था। रावण की लंका अमरकंटक में थी। अमरकंटक के पास ही राम और रावण का युद्ध हुआ जो वास्तव में आर्य और अनार्य युद्ध था। रावण का युद्ध अमरकंटक की चोटी पर हुआ। एक एक ओर गोंड सेना और दूसरी ओर उराव और सबरो की मुठभेड़ हुई। अनत्ता राम की जित हुई। राम ने गोंडो के विपक्छ उराव और सबरो को कर लिया सहयता से विजय पायी। यही उराव काल में वानर कहलाते थे। उराव और सबर आज भी अमरकंक के पास जाते सन ११११ सबरो की संख्या प्रायः छह लाख और उराव की संख्या नौ लाख थी।
आज भी मध्य प्रदेश में गोंड लोग दसहरा के पर्व पर रावनदेव की पूजा करते है। वइसे ही महारष्ट्र कवर्धा जिले के हिव्रगाव देव जंगल में आदिवासी रावनदेव की पूजा करते है।
महराजा रावण के नाम पर भंडारा गोंडियाजिले में रावनबाडी गांव है इसी तरह छत्तीसगढ़ रायपुर में रावणपरा मोहल्ला है। इससे जाहिर होता है की रावण का आस्तित्व और राजस्व इन प्रदेशो में था। नागपुर के पास रामटेक रामटेक तहसील में डेवलपर आदिवासी बाहुल्य छेत्र में गोंड लोग रावण की पूजा करते है
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