Gondo community tribes marriage relationship गोंडों समुदाय जनजातियों विवाह संबंध

बड़ादेव (सृजन करने वाली शक्ति), दुल्हा दुल्ही देव (शादी विवाह सूत्र में बाँधने वाला देव), पंडापुजारी   भूमकाल  (रोग दोष का निवारण करने वाला देव), बूड़ादेव (बूढाल पेन) कुलदेवता या पुरखा, जिसमे उनके माता पिता को भी सम्मिलित किया जाता है, नारायण देव  और  गोंडों के मुख्य देवता हैं। इनके अतिरिक्त ग्रामों में ग्राम देवता के रूप में खैरोमाई  (ग्राम की माता), ठाकुर देव, खीला मुठ्वा, नारसेन (ग्राम की सीमा पर पहरा देने वाला देव), ग्राम के लोगों की सुरक्षा, फसलों की सुरक्षा, पशुओं की सुरक्षा, शिकार, बीमारियों और वर्षा आदि के भिन्न भिन्न देवी देवता हैं। इन देवताओं को बकरे और मुर्गे आदि की बलि देकर प्रसन्न किया जाता है। गोंडों का भूत प्रेत और जादू टोने में अत्यधिक विश्वास रहता  है और इनके जीवन में जादू टोने की भरमार होता  है। किंतु बाहरी जगत्‌ के संपर्क के प्रभावस्वरूप इधर इसमें कुछ कमी हुई है। अनेक गोंड लंबे समय से हिन्दू धर्म  तथा संस्कृति के प्रभाव में हैं और कितनी ही जातियों तथा कबीलों ने बहुत से हिंदू विश्वासों, देवी देवताओं, रीति रिवाजों तथा वेशभूषा को अपना लिया है। पुरानी प्रथा के अनुसार मृतकों को दफनाया जाता है, किंतु बड़े और धनी लोगों के शव को जलाया जाने लगा है। स्त्रियाँ तथा बच्चे दफनाए जाते हैं।
आस्ट्रोलायड नस्ल की जनजातियों की भाँति विवाह संबंध के लिये गोंड भी सर्वत्र दो या अधिक बड़े समूहों में बंटे रहते हैं। एक समूह के अंदर की सभी शांखाओं के लोग 'भाई बंद' कहलाते हैं और सब शाखाएँ मिलकर एक  समूह बनाती हैं। कुछ क्षेत्रों से पाँच, छह और सात देव सगा की पूजा करनेवालों के नाम से ऐसे  समूह मिलते हैं। विवाह के लिये लड़के द्वारा लड़की को घर जाकर रिस्ता मांगने  की प्रथा है। भीतरी भागों में विवाह पूरे ग्राम समुदाय द्वारा संपन्न होता है और वही सब विवाह संबंधी कार्यो के लिये जिम्मेदार होता है। ऐसे अवसर पर कई दिन तक सामूहिक भोज और सामूहिक नृत्यगान चलता है। हर त्यौहार तथा उत्सव का आवश्यक अंग है। वधूमूल्य की प्रथा है और इसके लिए बैल तथा कपड़े दिए जाते हैं।
युवकों की मनोरंजन संस्था - गोतुल का गोंडों के जीवन पर बहुत प्रभाव है। बस्ती से दूर गाँव के अविवाहित युवक एक बड़ा घर बनाते हैं। जहाँ वे रात्रि में नाचते, गाते और सोते हैं; एक ऐसा ही घर अविवाहित युवतियाँ भी तैयार करती हैं। बस्तर के मारिया गोंडों में अविवाहित युवक और युवतियों का एक ही कक्ष होता है जहाँ वे मिलकर नाचगान करते हैं।
गोंड खेतिहर हैं और परंपरा से दहिया खेती करते हैं जो जंगल को जलाकर उसकी राख में की जाती है और जब एक स्थान की उर्वरता तथा जंगल समाप्त हो जाता है तब वहाँ से हटकर दूसरे स्थान को चुन लेते हैं। किंतु सरकारी निषेध के कारण यह प्रथा बहुत कम हो गई है। समस्त गाँव की भूमि समुदाय की सपत्ति होती है और खेती के लिये व्यक्तिगत परिवरों को आवश्यकतानुसार दी जाती है। दहिया खेती पर रोक लगने से और आबादी के दबाव के कारण अनेक समूहों को बाहरी क्षेत्रों तथा मैदानों की ओर आना पड़ा। किंतु वनप्रिय होने के कारण गोंड समूह शुरू से खेती की उपजाऊ जमीन की ओर आकृष्ट न हो सके और धीरे धीरे बाहरी लोगों ने इनके इलाकों की कृषियोग्य भूमि पर सहमतिपूर्ण अधिकार कर लिया। इस दृष्टि से गोंड कि बड़ी उपजाति मिलती हैं : एक तो वे हैं जो सामान्य किसान और भूमिधर हो गए हैं, जैसे-: रघुवल, डडवे और कतुल्या गोंड। दूसरे वे हैं जो मिले जुले गाँवों में खेत मजदूरों, भाड़ झोंकने, पशु चराने और पालकी ढोने जैसे सेवक जातियों के काम करते हैं।
गोंडों का प्रदेश गोंडवाना के नाम से भी प्रसिद्ध है जहाँ 15वीं तथा 17वीं शताब्दी राजगौंड राजवंशों के शासन स्थापित थे। किंतु गोंडों की छिटपुट आबादी समस्त मध्यप्रदेश में है। उड़ीसा, आंध्र और बिहार राज्यों में से प्रत्येक में दो से लेकर चार लाख तक गोंड हैं। असम के चाय बगीचोंवाले क्षेत्र में 50 हजार से अधिक गोंड आबाद हैं। इनके अतिरिक्त महाराष्ट्र और राजस्थान के कुछ क्षेत्रों में भी गोंड आबाद हैं। गोंडों की कुल आबादी 30 से 40 लाख के बीच आँकी जाती है, यद्यपि सन्‌ 1941 की जनगणना के अनुसार यह संख्या 25 लाख है। इसका कारण यह है कि अनेक गोंड जातियाँ अपने को हिंदू जातियों में गिन जाती  हैं। बंगाल, बिहार और उत्तर प्रदेश के दक्षिणी भागों में भी कुछ गोंड जातियाँ हैं जो हिंदू समाज का अंग बन गई हैं। गोंड जनजाति के लोग 12 जातियों में विभक्त हैं। किंतु उनकी 50 से अधिक उपजातियाँ हैं जिनमें ऊँच नीच का भेदभाव भी है।
वास्तव में गोंडों को शुद्ध रूप में एक जनजाति कहना कठिन है। इनके विभिन्न समूह सभ्यता के विभिन्न स्तरों पर हैं और धर्म, भाषा तथा वेशभूषा संबंधी एकता भी उनमें नहीं है; न कोई ऐसा जनजातिय संगठन है जो सब गोंडों को एकता के सूत्र में बाँधता हो। उदाहरणार्थ राजगौंड समाज क्षत्रिय है ये समाज गौड़ से भिन्न है इनका इतिहास बहुत पुराना और रहस्यमई है चुके हैं। इनका इतिहास बहुत गौरवशाली है। राजगौंड ने हिंदू धर्म से संबंधित है, कुछ ने इस्लाम को चुना है।लेकिन अब ध्रुव गोंड समाज हल्बा ,प्रधान ,उराव भील। . ...... सभी समाज एक सूत्र में बँधकर बंधने का शसक्त प्रयास कर रहे है 

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