kachargarh koya bhumi

                     गोंडवाना कोयाभूमि कोयली कचारगढ़ 
गोंडवाना के मध्य येरुनगहा कोर (सतपुड़ा पर्वतीय संभाग ) के सलेटेकरि पर्वत श्रेणयों के अंतिम छोर में कोयली कछार लोहगढ़ है। यह परिछेत्र अनेक नदी नाले बियाबान जंगल पहाड़ ,अनगिनत प्रजातियों के वनस्पति ,खनिज,सम्पदा का अपार भंडार है। इसके उत्तर परिचित्र में ताम्बा मैंगनीज ,अभरक की अधिकता दक्छिण पूर्व में लोहा  पत्थर है। प्राचीन काल में लोहा बनाने की शुरुआत यही से होने का संकेत मिलता है। कच्चे लोहा कच्चे लोहा से औजार बनाकर गोंडी धर्म गुरु पहांदी पारी कूपार लिंगो ने गोंडियन सागा देवताओ याने की माता कली कंकाली के बच्चो को सिखाया।  योगिराज सम्भु सेक ने कचरगढ़ गुफा में बंद माता कली कंकाली की  बच्चों को गुफा की मुख्य द्वार को खुदाई करके मुक्त किया था
इस तरह कचारगढ़ गोंडी देवीदेवताओं की भूमि है
गोंडी धर्म गुरु की पहंडी पारी कूपर लिंगो की साधना स्थल और माता कलिकनकाली की शक्तिस्थल है। यह पर्वत पावन भूमि कोयवंशी गोंड सगा समाज का धार्मिक स्थल है ,जिसके दर्शन हेतु आज भी मांघ माह के प्रथम व्  दुतीय  को लिंगो जात्रा प्रति वर्ष मेला लगता है 
वर्तमान महारष्ट्र के सल्हेकसा ब्लाक से २५ कि.मी दुरी पर पूर्व दिशा में बम्बई हावड़ा रेलमार्ग पर स्थित दरेकासा रेलवे स्टेशन से उत्तर की ओर ४ किलोमीटर पर यह गुफा स्थित है  कोयली कछार गढ़ की पर्वत की उचाई पर सर्वप्रथम माता कली कंकाली का सकती स्थल है वह से आगे जाने पर पर्वत के गोद में  बारह माह बहते रहने वाली झरना है जिसे पारकर पर्वत की उचाई पर चढ़ने से काची कोंपर गुफा का प्रवेश द्वार दिखाई देता है। गुफा के द्वार पर हिरासुका का क़ुरबानी स्थल दिखाई देता है जहां होम धुप देकर अंदर जाने के लिए संकीर्ण मार्ग है गुफा का चेता फल करीब १००x १०० गज का है। गुफा के अंतिम चोर में दये और एक कुंड के ऊपर ठीक दस गज का व्यास होल  है कोयली कचारगढ़ पर्वत के पछिम  भाग लीगो बाबा की कुटी है जहां स्रधलु जाकर दर्शन करते है 
  

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