गोंड शासन के दौरान चंद्रपुर में बने सभी इमारते और मंदिर अब तक उनके इतिहास की गवाही देते है।

एक बार खांडक्य राजा अंचलेश्वर और महांकाली मंदिर में पूजा करने के बाद महल की ओर वापस आ रहे थे, तब उन्होंने देखा की एक खरगोश जान बुझकर कुछ कुत्तो पर कूदने लगा। ऐसा करने पर कुदरतन कुत्ते उसका पीछा करने लगे और खरगोश उन्हें अपने पीछे दौडाता रहा। इसके बाद, खरगोश भाग कर उसी जगह पर वापस आया जहा से उसने दौड़ना शुरू किया था। और आखिर कुत्तो ने खरगोश को मार डाला। राजा खांडक्य और रानी हिरातनी यह सब देखकर चकित रह गए। रानी का मानन था कि हो न हो यह कोई अलौकिक घटना है।  इसलिए जिस जगह खरगोश घूम कर वापस आया उस जगह पर राजा-रानी ने ४ दरवाजे और ५ खिडकिया बनाने की ठान ली और तेल सिंग ठाकुर को डिजाईन बनाने के लिये कहा। और इसी तरह से इन ४ दरवाजो के भीतर चंद्रपुर शहर का निर्माण हुआ।
“गोंडकालीन चंद्रपुर” अशोक सिंह की सबसे बेहतरीन कृतियों में से एक है। इस किताब मे गोंड समाज (जो अभी लुप्त हो रहा है) के चंद्रपुर पर शाषण के बारे में लिखा है। इस समाज ने सन १२४७ से १७५१ याने ५०० साल तक यहाँ राज किया है। गोंड शासन के दौरान चंद्रपुर में बने सभी इमारते और मंदिर अब तक उनके इतिहास की गवाही देते है।
आईये देखे इस शहर में बसे दार्शनिक स्थलो की एक झलक तथा उनका इतिहास!

जल महल (जुनोना)




जल-महल छायाचित्रकार – अभिषेक येरगुड़े

राजा खांडक्य बल्लाडशाह ने यहाँ सन १४७२ से १४९७ तक राज किया। बचपन से उन्हें कुश्तरोग था। उनकी पत्नी रानी हिरातनी एक अध्यात्मिक और अच्छी महिला  होने के साथ साथ एक होशियार शाषणकर्ता भी थी। वह राजा और अपने प्रजा की देखभाल अच्छी तरह से करती थी।
रानी हिरातनी, बीमार रजा खान्द्क्य के आराम के लिए, चंद्रपुर से थोडी ही दूर जुनोना में तालाब के नजदीक जल महल का निर्माण किया जिसमे राजा विश्राम किया करते थे।

अंचलेश्वर मंदिर




अंचलेश्वर मंदिर :छायाचित्र – KP Fotografie

.रानी हिरातनी ने राजा खांडक्य को खुली हवा लेने के लिये शिकार पर जाने को प्रोत्साहित किया। एक बार जब राजा अपने सैनिको के साथ जंगल में गया तो उनके पास का पानी ख़त्म हो गया। तब उन्हें झरपट नदी के बारे में पता चला जिसमें पानी नहीं था पर उसके किनारे गाय के पंजे के आकार का एक छोटा तालाब दिखाई दिया। राजा ने उस पानी से शरीर स्वछ किया और अपनी प्यास भी बुझायी। उस पानी से राजा की त्वचा की बीमारी दूर हो गयी। जब रानी हिरातनी को इसके बारे में पता चला तब उन्होंने वहा अंचलेश्वर मंदिर का निर्माण किया।
बाद मे, रानी हिराई( १७०४ – १७१९) ने लाइम स्टोन से इस मंदिर का पुनर्निर्माण किया।इस  
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महाकाली मंदिर




महाकाली मंदिर और महाकाली देवी जी की मूर्ति स्त्रोत : : www.shrimahakalidevasthan.org

अंचलेश्वर मंदिर का जब निर्माण हो रहा था तब महाकाली देवी की एक बड़ी मूर्ति वहा झरपट नदी के पास की गुफा में मिली। रानी हिरातनी ने उस जगह महाकाली मंदिर का निर्माण किया। १८ वी शताब्दी में रानी हिराई ने इस मंदिर का पुनर्निर्माण किया। मंदिर के मुख्य द्वार पर रंगीत पेंटिंग होने वाला ये एक ही मंदिर भारत में है। पेंटिंग का रंग ३०० साल के बाद भी चमक रहा है।

बीरशाह की समाधी




बीरशाह की समाधी :छायाचित्र – श्री अशोक सिंग ठाकुर

एक शहंशाह के अपनी रानी की याद में बनाये, दुनिया भर में मशहूर ताज महल को तो हम सभी जानते है। पर एक रानी द्वारा अपने राजा की याद में बनाये प्रेम की धरोहर को शायद ही हममे से कोई जानता होगा। अंचलेश्वर मंदिर के परिसर में रानी हिराई ने अपने पति राजा वीर (बीर) शाह की याद में १८ वी शताब्दी में एक समाधी बनवायीं, जो महाराष्ट्र में अब तक की सबसे बड़ी, और किसी भी रानी द्वारा अपने  राजा की याद में बनायीं एकमात्र समाधी है।

अपूर्ण देवालय




गणपति –
शिवलिंग– अपूर्ण देवालय की एक मूर्ति
दशावतार दुर्गा – अपूर्ण देवालय का एक भाग

१७ वी शताब्दी के शुरुआत में राजा धुन्द्या रामशाह के वक्त राजप्पा कोमटी ने मंदिर निर्माण का कार्य शुरू किया पर उनकी अचानक मौत से भगवान् की मुर्तिया अपूर्ण रह गयी। अगर वो मंदिर बन जाता तो अब तक का सबसे बड़ा मंदिर होता ।

जटपुरा गेट




जटपुरा गेट – स्त्रोत – www.mycitychanda.com
जटपुरा गेट की आज की स्थिति – स्त्रोत : wikimapia.org

इस गेट का निर्माण गोंड राजा हिरशाह (१४९७-१५२२) ने किया था।

ताडोबा- टाइगर रिज़र्व फारेस्ट




टाइगर रिज़र्व फारेस्ट – स्त्रोत : www.mycitychanda.com

ताडोबा राष्ट्रीय उद्यान और अंधारी अभयारण्य मिलाकर ताडोबा-अंधारी बाघ प्रकल्प का निर्माण हुआ है। वहा रहने वाले गोड तारु जमात से राष्ट्रीय उद्यान को नाम मिला और अंधारी नदी के नाम की वजह से अभयारण्य को लोग जानने लगे। ब्रिटिश अधिकारियो ने १९ वी शताब्दी में स्तम्भ का निर्माण किया जो पुराने चंद्रपुर-नागपुर रोड पर है।
INTACH की मदत से अशोक सिंह ठाकुर ने ऊपर बताये गये अलौकिक ऐतेहासिक स्थलों का संरक्षण तो किया ही साथ ही में इस क्षेत्र में लुप्त और भी कई ऐतिहासिक जगहो को भी खोज निकाला । इनमे से कुछ निम्नलिखित है।

चंदनखेडा



चंदनखेडा में मिला हुआ एक विशाल घड़ा (छायाचित्र – 

डोलमेन (मेगालिथिक स्ट्रक्चर)




डोलमेन (हीरापुर) छायाचित्र – श्री अशोक सिंग ठाकुर

डोलमेन एक ऐसी वास्तु है जो मेगालिथिक ज़माने से है और आशिया खंड में १०००० वर्ष पुरानी है।

विजासन गुफाए




विजासन गुफाए (छायाचित्र – 


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