गोंडवाना जातिवाचक नहीं " अपितु प्रजावाचक है

    गोंडवाना  जातिवाचक नहीं " अपितु प्रजावाचक है !
आधुनिक  युग में  कल्पना की  उड़ान  और कपोल  बातों  पर कोई  विश्वांस करना  नहीं  चाहता | 
यह युग शोध ,परख और अनुसन्धान का युग  है | समान्यतः विश्व स्तर पर अब जो बातें की जा रही है इस विषय पर वह कुछ इस तरह की है - आरंभ में हमारी धरती एक ही बड़ा भू -खण्ड  थी जो कि चारो महासागरों से घिरी हुई थी | इस भू -खण्ड का नाम भू -वैज्ञानिको ने पैंजिया " रखा  | इस पैंजिया पर छोटे छोटे आंतरिक सागरो  का विस्तार था |' पैंजिया ' को घेरे हुए सागरों को 'बेगनर' ने 'पैंथलासा ' नाम दिया | आज से २० करोड़ वर्ष पूर्व पैंजिया का टूटना शुरू हुआ | वह उत्तर और दक्षिण दो भागों में अलग हुआ बिच की खाई 

चौड़ी  हो गयी और उसमे पानी भर गया | उत्तरी भाग 'लारेशिया 'और दकचिढ़ी भाग गोंडवानालैण्ड 
नाम दिया गया | ज्यो -ज्यो समय बीतता चला गया गोंडवाना लैंड और लारेशिया भी टूटते चले गए 
लगभग १३ करोड़ ५० लाख वर्ष पूर्व गोंडवाना लैंड कई विशाल भूखण्ड में बत गया | ये सभी भूखण्ड 
अलग -अलग दिशाओ में टूटते चले गये | लगभग ६ करोड़ ५० लाख वर्ष पूर्व ये सभी भूखण्ड में 
स्वतंत्र महादिव्प बन गए | वर्तमान में आफ्रिका , दक्षिण अमेरिका ,अरब ,भारत , आस्टेलिया और अंटार्कटिका 
उसी महादिव्प अर्थात गोंडवाना लैंड के हिस्से है | ठीक उसी तरह लारेशिया का टूटना  सुरु हुआ और उसमे उत्तर अमेरिका ,यूरोप,एशिया ' बने | उपरोक्त अध्यन से यह अवधारणा बनती है कि पृथ्वी के एक बड़े भू -भाग पर निवास करने वाली मनुष्य जाति "गोंड " है |     

  

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