गोंडवाना सम्राज्य की अस्मिता गढ़ व किला

                   गोंडवाना सम्राज्य की अस्मिता गढ़ व किला
                                            मदन महल 
गोंडवाना के गढा   कटंगा राज्य में वर्तमान जबलपुर नगर का सिरोमणि मदन महल गोंड कालीन शिलाखण्ड पर पश्चिमभिमुख सावधान स्थिति में खड़ा अद्भुत स्थापत्य का एक बेजोड़ नमूना है जो पहाड़ की छोटी पर एक ही गोलाकार है और गोंडवाना के गोंडी राजाओ के इतिहास गौरवपूर्ण गाथा सुनाता है। ऊँची -ऊँची पहाड़ियों के आकर्षण दृश्यों के मध्य सर्वोच्च सिखर शिला पर स्थित यह महल अपनी अद्भुत व अलौकिक कलाकृति से दूर ही दर्शको को अपनी ओर आकर्षित कर उनके मन में अपने प्रति जिज्ञासा निर्माण करता है।  गढ़ा कटंगा  राज्य के इस मदन को मदन सिंह मंडावी नामक गोंड राजा ने बनवाया था 

मदन महल (जबलपुर )



पंचमणी 
सतपुड़ा पर्वत मालाओ में स्थित पंचालगढ़ यह नागवीय गोंड राजाओ का तीसरा प्राचीन किला है आज जिसे पंचमणी कहा जाता है व्ही प्राचीन पंचालगढ़ है सतपुड़ा का केंद्र स्थल पंचालगढ़ समुद्र सतह से लगभग ४४०० फिट की उचाई पर है हरी भरी पहाड़ियों और घाटियों से घिरी प्रकृति की अनुपम सौन्दर्य स्थल है।  जो मानव मन को मोह लेता है घुमावदार रस्ते जहां एक ओर मनुष्य के मन में भय पैदा करता है वही कटावदार पहाड़ियों सघन वनस्पति और बहने वाली सीतल हवा मन को उत्साहित करते है। पंचालगढ़ अर्थात वर्तमान पंचमढ़ी का स्वयं का अपना प्राचीन इतिहास है। 
पंचमढी पर्वत 
सिंगौरगढ़ 
मध्यप्रदेश में गोंडवाना राज्य की भव्यता एव संस्कृति को उजागर करने वाला गोंड राजाओ के जो प्राचीनतम 
किले है उनमे सिंहोरगढ़ किले का भी प्रमुख स्थान है। दमोह जिले में जबलपुर से करीब ५१ किलोमीटर की दुरी  पर स्थित यह किला गोंड कालीन स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना है पर्वती श्रृंखलाओं में एक ऊँची पहाड़ी का कठोर बलुआ पतथरो से से बना यह किला  इसलिए महत्वपूर्ण है की प्राचीन काल में उत्तर दिशा की ऒर से गोंडवाना राज्य पर आक्रमण  वाले सत्रुओ को रोकने का अभेद गढ़ था यह किला समुद्र सतह से से करीब ३०४१ फिट ऊंचाई पर स्थित हैं।
सिंगौरगढ़ 
सर्कार रस्ते से पहाड़ी पर चढ़ने से किले का मुख्य द्धार आज भी सही सलामत है। काटकोणाकर तरासे काटे गए लम्बे चौड़े बलुआ पथरो की अद्भुत जुड़ाई किले का मुख्य द्धार बनाया है १३ वि सदी के गोंडकालीन स्थापत्य कला को प्रदर्शित करता है वहां विशालकाय पथरो की मजबूती जुदाई को देखकर  यह अनुमान लगाया जा सकता है की उतने बड़े और भरी पथरो को पहाड़ी की छोटी पर ले जाने की व्यवस्था कितनी अद्भत रही होगी।  आज के वैज्ञानिक रूप में यह कार्य क्रेनों के माध्यम से आसानी से किया जा सकता है। किन्तु उस वक्त किले के निर्माण कर्ताओ ने कौन सी क्रेनों की सहायता ली होगी ? ये बड़ा आश्चर्यजनक है। 

  

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